शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024

राजनैतिक छद्म राष्ट्रवाद, पूंजीवाद और निजीकरण

"जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा वो भारत देश है मेरा" 

इस गीत की पंक्तियों को याद करते हुए प्रस्तुत मेरा प्रथम लेख ....

शायद हम गौरवमयी भारतीय इतिहास के माध्यम से वह दिन अब भी नहीं भूले होंगे जब हमारा भारत देश, सोने की चिड़िया कहलाता था जिससे आकर्षित होकर अन्य देशों के शासकों की नजर भारत देश की धनाढ्य अस्मिता को लूटने पर लगी रहीं जिसमें उन लुटेरों द्वारा हमारे देश के ही कुछ जयचंदों गद्दारोंं की मिलीभगत से आंशिक सफलता भी हासिल की गई जिसकी रही सही कसर अंग्रेजों द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी की पूंजीवादी व्यवस्था के बल पर साम्राज्यवाद को खड़ा कर देश को गुलाम बनाकर पूरी कर ली गई ।

इसका खामियाजा हमारे भारत देश की जनता को गुलामी की जंजीरों में जकड़ कर भुगतना पड़ा एवं अपनी खोई हुई आजादी को हासिल करने के लिए अनेकानेक कुर्बानियां देनी पड़ी।

इस पर विस्तृत जानकारी पाठकों द्वारा स्वयमेव हासिल है।

गुलामी से आजादी की ओर बढ़ चुके भारत के समक्ष आर्थिक चुनौतियों से लेकर उनकी व्यवस्थाओं की समस्या को देखते हुए भारत अपने आम नागरिकों को साथ लेकर सामाजिक एवं राजनैतिक पुरुषार्थ के बल पर आवश्यकतानुसार नवनिर्माण कर देश के मूलभूत ढांचे का सृजन करते हुए पुुुनः देश को ऐतिहासिक प्रगति केे रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया।

यह बात भारत देश के गौरव एवं 11वें प्रधानमंत्री अटल जी के संसद में दिए गए वक्तव्य के अनुसार ..

"ऐसा नहीं है कि हमने 50 साल में प्रगति नहीं की और मैं उन लोगों में से नहीं जो मैं यह कहूं, ऐसा कहना देश के किसानों मजदूरों और युवाओं के पुरुषार्थ पर ज्यादती करनी होगी एवं आम नागरिकों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं होगा "
https://youtu.be/4EpfJxKyosE 

वर्तमान मोदी सरकार को इस कटु सत्य को स्वीकार कर देश को निरंतर प्रगति की ओर ले जाना चाहिए ...

पुनः मूल विषय पर लौटते हुए ...

गौरतलब है कि वर्तमान प्रधानमंत्री आदरणीय नरेंद्र मोदी जी की अगुवाई वाले केंद्रीय नेतृत्व द्वारा भारत देश के सर्वश्रेष्ठ सांसद एवं गौरवशाली प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी बाजपेई जी की राष्ट्रप्रेमी विचारधारा के विरुद्ध निरन्तर देश केेे आम-नागरिकों युवाओं किसानों के देश के प्रति समर्पण एवं उनके पुरुषार्थ के बल पर निर्मित सार्वजनिक संस्थानों पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर उन्हें व्यवसायिक बताते हुए बाजारवाद केेे हवालेे करने हेतु चंद पूंजीपतियों के माध्यम से निवेेशवाद को बढ़ावा देकर उन्हें व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने तथा संपूर्ण राष्ट्र पर अपनी व्यक्तिगत विचारधारा थोपने के कुत्सित प्रयास किए जानेे से राष्ट्रहित कैसे संभव हो सकता है ?
यह एक विचारणीय प्रश्न है।

देश को प्रगति के पथ पर ले जाने वाले तथा देेश के लाखों-करोड़ों युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराकर उनके भविष्य को बेहतर तथा सुरक्षित रखने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थान व्यवसायिक कैसे हो गए, इसकी जवाबदेही पूर्णतः भारत सरकार की है एवं सरकार को देश के लिए समर्पित सार्वजनिक संस्थानों को मनमुताबिक बेंचने का अधिकार किसने दिया ?

सत्ता को यह बात बिल्कुल भी नहीं भूलना चाहिए कि सरकारें इकबाल से चलती हैं तानाशाही से नहीं !

जीते जागते राष्ट्रपुरुष भारत देश के संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ जाकर देश की सार्वजनिक संपत्तियों का निजीकरण करना, वर्तमान सरकार की छद्म राष्ट्रवाद की विचारधारा को परिलक्षित करता नजर आ रहा है जिसमें सबका साथ - सबका विकास संभव नहीं है।

प्रधानमंत्री जी को यह नहीं भूलना चाहिए कि लोकतंत्र तानाशाही के लिए कोई जगह नहीं होती

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भारत देश की रीढ़ की हड्डी कहलाने वाले सार्वजनिक संस्थानों को बचाए रखने हेतु देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्रद्धेय नरेंद्र मोदी जी से सार्वजनिक संस्थानों में कार्यरत कार्मिकों, देश की युुुवाशक्ति एवं राष्ट्रहितैषी नागरिकों की विनम्र अपील ..

असफलता एक चुनौती है स्वीकार करो,
कहां कमी रह गई देखो और सुधार करो।
जब तक सफल न हो नींद चैन की त्यागो तुम,
संघर्षो का मैदान छोड़ मत भागो तुम।
कुछ किए बिना जय जयकार नहीं होती .....

जय हिन्द
वंदे मातरम्

नोट -:
   यह लेखक के निजी विचार हैं, इसका किसी अन्य लेख से कोई संबंध नहीं है।




 

अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी Vs मोदी सरकार का निजीकरण

प्रथम निवेदन ...
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लोकतंत्र ही किसी भी सरकार का सबसे मजबूत विपक्ष है और देश के राष्ट्रीय संस्थानों का #निजीकरण लोकतंत्र रूपी विपक्ष के खिलाफ किसी भी सरकार की सबसे ख़तरनाक साजिश है।

जरा सोचिए ...

निजीकरण से, बेरोजगारी की पीड़ा झेल रहे शिक्षित युवाओं की निरंतर बढ़ती आत्महत्या, रोजगार के नाम पर लूट तथा शारीरिक मानसिक एवं आर्थिक शोषण एवं देश के सभी वर्गों में असमानता की गहराती खाई और बढ़ती जाएगी और शनैः शनैः पूंजीवादी शक्तियां संपूर्ण भारतीय लोकतंत्र पर कब्जा कर लेंगी और देश को उनकी गुलामी स्वीकार करनी ही पड़ेगी।

इसके लिए हमें अपने इतिहास में उल्लेखित अंग्रेजों की #EastIndiaCompany की व्यापारिक गतिविधियों को लोकतंत्र के कब्जे के रूप में उपयोग करने की नीतियों को वर्तमान परिदृश्य से आमेलित कर पुनः पढ़ने एवं समझने की आवश्यकता आन पड़ी है।

इसलिए इस सुनामी को देश के प्रत्येक युवा, किसान  छोटे व्यापारी एवं आम नागरिकों को आगे आकर रोकना ही होगा।

ध्यान रहे !
हमारा यह लोकतंत्र, देश के नागरिकों को अमर शहीदों द्वारा दी गई अमानत है जिसे बचाना देश के हर नागरिक का फर्ज है और धर्म भी ...

जय हिन्द 🇮🇳

~प्रदीप कुमार द्विवेदी की 🖋️ से

सोमवार, 15 मार्च 2021

निजीकरण के विरुद्ध आवाज

जागरूकता हेतु एक प्रयास

एक मां थी और सौ करोड़ बेटे थे। मां ने अपने एक बेटे बेचू दास को घर संभालने की जिम्मेवारी सौंपी थी। वह रात-दिन काम कर रहा था कि घर का विकास हो। घर में आठ-दस भैंसे थीं, मुर्गियां थीं, खेत थे और एक तालाब था। बेटे ने आकर एक दिन मां को कहा-

मां, मैं सोच रहा हूं कि मुर्गिंयों को ठेके (कॉन्ट्रेक्ट) पर दे दूं।’’*

-’’ क्यों ?’’

*" मुर्गियां जितने का दाना खा रही हैं उससे कम के अंडे दे रही हैं। इनको रखने से हमें नुकसान हो रहा है।’’*

-’’ लेकिन बेटा, उनके दाने की मात्रा बढ़ाकर हम और अंडे नहीं ले सकते ?’’

 बेटा झल्ला गया। उसने चिढ़कर कहा-

*"’ मां, मैने भूल्लन बाबू से बात कर ली है। वे मुर्गियां ठेके पर ले जायेंगे और उसके बदले में हमें रोज अंडे दे दिया करेंगें।’’*

मां चुप हो गई। बुढ़िया की कौन सुनता। उसने सोचा कि बाकी बेटे बोलेंगे लेकिन सब के सब चुप थे। 
बेचू ने मुर्गियां कॉनट्रैक्ट (ठेके) पर दे दीं और दिन-रात मेहनत करने लगा। न खाने का ठिकाना न पहनने का। समय बीते वह एक दिन उत्साह से लबालब अपनी मां के पास आया-और बोला
*’’ मां, मैं सोच रहा हूं कि तालाब को कॉन्ट्रेक्ट पर दे दूं।’’*

-’’ क्यों ? ’’ मां दुःखी होकर बोली।

*" देखो, मछली का जीरा डालना, उनकी रक्षा करना कितना बेकार का काम है जबकि भूल्लन सेठ तालाब के बदले हमें मछलियां देने को तैयार है। बिना किसी झंझट के ही मछलियां मिल जाया करेंगी मेने तालाव को कॉन्ट्रेक्ट (ठेके) पर दे दिया है।’’*

-’’ लेकिन बेटा.................।’’
 बेचूदास नाराज हो गया। 

*’’ मां, मैें जो कर रहा हूं सोच-समझकर ही कर रहा हूं।’’*

तालाब भी हाथ से चला गया। मछलियां आने लगीं। बेचूदास खुशी में झूमता रहता था। उसको पक्का यकीन हो गया था कि उसके पूर्वज मूर्ख थे जो मछलियों के लिए तालाब और अंडों के लिए मुर्गियां रखते थे। वह अपनी अक्लमंदी पर इतराता रहता था। फोकट की मछलियां खाकर उसका गुण गाने वाले उसके यार-दोस्त उसकी खूब प्रशंसा करते रहते ।

थोड़े समय के बाद वह मारे खुशी के झूमता हुआ माँ के पास आया-
*’’ मां, भैंसों का भी ठेकेदार मिल गया है कॉन्ट्रेक्ट पर।’’*

-’’ क्या अब भैंसे भी हाथ से निकलजायेंगी?’’

*’’ अरे मां, तुम कितनी भोली हो। भैंसे कितना चारा खाती है। साथ ही एक चरवाहा भी रखना पड़ता है। उसका खाना-कपड़ा अलग। बिना किसी तूल-बखेड़े के ही दूध देने को भूल्लन सेठ तैयार है कॉन्ट्रेक्ट पर।’’*

मां जानती थी कि बोलने पर चिल्लायेगा तो चुप ही रही। उसने सोचा कि बाकी भाई बोलेंगे लेकिन सब अपने-अपने कपड़ों की चमक में खोये हुये थे। बेचूदास ने सबको अलग-अलग नाप के कपड़े बनवा दिये थे। सबको यह भरोसा दिला दिया था कि उसके कपड़े तो नाप के हैं दूसरों के नहीं। सब एक दूसरे का मजाक उड़ाने में व्यस्त थे। 

बेचूदास एक दिन खूब मगन होकर अपनी वीरता के गीत गा रहा था। मां ने पूछा -

-’’ अब क्या बेचकर आ गया ?’’

*’’ मां बेचा नहीं, अनाज की नई व्यस्था कर दी।कॉन्ट्रेक्ट पर खेत भूल्लन संभालेगा। हमें अनाज दे दिया करेगा। खेत उसके अनाज हमारे। ’’*
मां ने सिर पीट लिया। वह चिल्लाती तो बेचूदास के दोस्त उसका मजाक उड़ाते थे। 

और एक दिन वह भी आया जब बेचूदास ने आकर मां को हंसते हुये कहा-
*’’ मां, सामान बांध लो हम शहर में रहने जा रहे हैं।’’*

-’’ क्यों ?’’

*’’ मां, मैने यह घर बेच दिया है और बदले में भूल्लन सेठ हमें शहर में एक फ्लैट दे रहा है। बिल्कुल मुफ्त, मां , गांव की गंदगी से निकलने का समय आ गया है।’’*

मां रोई-चिल्लाई लेकिन बेचूदास ने एक न सुनी।

*शहर में आने के बाद,भूल्लन सेठ का कॉन्ट्रेक्ट ख़त्म हो गया पहले अंडे आने बंद हुये, फिर तालाब सूख गया। दूध देने से भूल्लन सेठ ने साफ मना कर दिया सभी भाई परेसान होने लगे।*

और , एक दिन वह भी आया जब भूल्लन सेठ भाग गया।

 बेचूदास झोला उठाकर चला गया। 

*मां और उसके सौ करोड़ बेटे आज भी बैठे बैठे रो रहै है*

*ये मां हम सबकी भारत माता है और इसकी रक्षा करने के लिये सदियों से भारत माता के सपूत कुर्बानी देते आए हैं । आज आप नहीं जागे तो इतिहास में दफन आपकी हड्डियों को खोदकर आने वाली पीढियां कहेंगी कि ये उन देशद्रोहियों की हड्डियां हैं जिन्होंने पूंजीवादी ताकतों का प्रतिरोध करने का साहस नहीं किया ...*

यदि बात कुछ समझ में आ रही हो तो देशहित में अधिक से अधिक शेयर करें ताकि लोग जागरूक हों।
   *समझ में आए तो*
         *निजीकरण से देश बचाओ।*
   
    जय हिन्द,
       जय भारत।

    🙏🙏🙏🙏

राजनैतिक छद्म राष्ट्रवाद, पूंजीवाद और निजीकरण

"जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा वो भारत देश है मेरा"  इस गीत की पंक्तियों को याद करते हुए प्रस्तुत मेरा...