इस गीत की पंक्तियों को याद करते हुए प्रस्तुत मेरा प्रथम लेख ....
शायद हम गौरवमयी भारतीय इतिहास के माध्यम से वह दिन अब भी नहीं भूले होंगे जब हमारा भारत देश, सोने की चिड़िया कहलाता था जिससे आकर्षित होकर अन्य देशों के शासकों की नजर भारत देश की धनाढ्य अस्मिता को लूटने पर लगी रहीं जिसमें उन लुटेरों द्वारा हमारे देश के ही कुछ जयचंदों गद्दारोंं की मिलीभगत से आंशिक सफलता भी हासिल की गई जिसकी रही सही कसर अंग्रेजों द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी की पूंजीवादी व्यवस्था के बल पर साम्राज्यवाद को खड़ा कर देश को गुलाम बनाकर पूरी कर ली गई ।
इसका खामियाजा हमारे भारत देश की जनता को गुलामी की जंजीरों में जकड़ कर भुगतना पड़ा एवं अपनी खोई हुई आजादी को हासिल करने के लिए अनेकानेक कुर्बानियां देनी पड़ी।
इस पर विस्तृत जानकारी पाठकों द्वारा स्वयमेव हासिल है।
गुलामी से आजादी की ओर बढ़ चुके भारत के समक्ष आर्थिक चुनौतियों से लेकर उनकी व्यवस्थाओं की समस्या को देखते हुए भारत अपने आम नागरिकों को साथ लेकर सामाजिक एवं राजनैतिक पुरुषार्थ के बल पर आवश्यकतानुसार नवनिर्माण कर देश के मूलभूत ढांचे का सृजन करते हुए पुुुनः देश को ऐतिहासिक प्रगति केे रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया।
यह बात भारत देश के गौरव एवं 11वें प्रधानमंत्री अटल जी के संसद में दिए गए वक्तव्य के अनुसार ..
"ऐसा नहीं है कि हमने 50 साल में प्रगति नहीं की और मैं उन लोगों में से नहीं जो मैं यह कहूं, ऐसा कहना देश के किसानों मजदूरों और युवाओं के पुरुषार्थ पर ज्यादती करनी होगी एवं आम नागरिकों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं होगा "
https://youtu.be/4EpfJxKyosE
वर्तमान मोदी सरकार को इस कटु सत्य को स्वीकार कर देश को निरंतर प्रगति की ओर ले जाना चाहिए ...
पुनः मूल विषय पर लौटते हुए ...
गौरतलब है कि वर्तमान प्रधानमंत्री आदरणीय नरेंद्र मोदी जी की अगुवाई वाले केंद्रीय नेतृत्व द्वारा भारत देश के सर्वश्रेष्ठ सांसद एवं गौरवशाली प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी बाजपेई जी की राष्ट्रप्रेमी विचारधारा के विरुद्ध निरन्तर देश केेे आम-नागरिकों युवाओं किसानों के देश के प्रति समर्पण एवं उनके पुरुषार्थ के बल पर निर्मित सार्वजनिक संस्थानों पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर उन्हें व्यवसायिक बताते हुए बाजारवाद केेे हवालेे करने हेतु चंद पूंजीपतियों के माध्यम से निवेेशवाद को बढ़ावा देकर उन्हें व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने तथा संपूर्ण राष्ट्र पर अपनी व्यक्तिगत विचारधारा थोपने के कुत्सित प्रयास किए जानेे से राष्ट्रहित कैसे संभव हो सकता है ?
यह एक विचारणीय प्रश्न है।
देश को प्रगति के पथ पर ले जाने वाले तथा देेश के लाखों-करोड़ों युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराकर उनके भविष्य को बेहतर तथा सुरक्षित रखने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थान व्यवसायिक कैसे हो गए, इसकी जवाबदेही पूर्णतः भारत सरकार की है एवं सरकार को देश के लिए समर्पित सार्वजनिक संस्थानों को मनमुताबिक बेंचने का अधिकार किसने दिया ?
सत्ता को यह बात बिल्कुल भी नहीं भूलना चाहिए कि सरकारें इकबाल से चलती हैं तानाशाही से नहीं !
जीते जागते राष्ट्रपुरुष भारत देश के संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ जाकर देश की सार्वजनिक संपत्तियों का निजीकरण करना, वर्तमान सरकार की छद्म राष्ट्रवाद की विचारधारा को परिलक्षित करता नजर आ रहा है जिसमें सबका साथ - सबका विकास संभव नहीं है।
प्रधानमंत्री जी को यह नहीं भूलना चाहिए कि लोकतंत्र तानाशाही के लिए कोई जगह नहीं होती।
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भारत देश की रीढ़ की हड्डी कहलाने वाले सार्वजनिक संस्थानों को बचाए रखने हेतु देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्रद्धेय नरेंद्र मोदी जी से सार्वजनिक संस्थानों में कार्यरत कार्मिकों, देश की युुुवाशक्ति एवं राष्ट्रहितैषी नागरिकों की विनम्र अपील ..
असफलता एक चुनौती है स्वीकार करो,
कहां कमी रह गई देखो और सुधार करो।
जब तक सफल न हो नींद चैन की त्यागो तुम,
संघर्षो का मैदान छोड़ मत भागो तुम।
कुछ किए बिना जय जयकार नहीं होती .....
जय हिन्द
वंदे मातरम्
नोट -:
यह लेखक के निजी विचार हैं, इसका किसी अन्य लेख से कोई संबंध नहीं है।